अतिवाह्य देवता का वास्तु शास्त्र में महत्व

अतिवाह्य देवता को वास्तु शास्त्र में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह मुख्य रूप से सुरक्षा, शक्ति और ऊर्जा प्रवाह से जुड़े होते हैं। इन्हें वास्तु पुरुष के एक भाग के रूप में भी देखा जाता है और इनकी स्थिति मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम दिशा में मानी जाती है।

परिचय

अतिवाह्य देवता का स्वरूप

  • अर्थ: रक्षा, सुरक्षा और शक्ति प्रदान करने वाले देवता।
  • दिशा: उत्तर-पश्चिम
  • तत्व: वायु
  • स्वामी ग्रह: राहु और चंद्रमा
  • गुण: साहस, निर्णय शक्ति, संतुलन और रक्षा

वास्तु शास्त्र में अतिवाह्य देवता की भूमिका

✅ शुभ प्रभाव:

  • घर में सुरक्षा और स्थिरता बनी रहती है।
  • मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  • व्यवसाय और यात्रा में सफलता प्राप्त होती है।
  • घर के सदस्यों में साहस और धैर्य बढ़ता है।

❌ अशुभ प्रभाव (वास्तु दोष होने पर):

  • मानसिक तनाव और अस्थिरता बनी रहती है।
  • कानूनी विवाद या शत्रुता बढ़ सकती है।
  • यात्रा में बाधाएँ और अप्रत्याशित समस्याएँ आ सकती हैं।
  • परिवार के सदस्यों के बीच मतभेद और असहमति हो सकती है।

अतिवाह्य देवता की पूजा और वास्तु उपाय

  • उत्तर-पश्चिम दिशा में वायु देवता या हनुमान जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • नियमित रूप से "ॐ वायवे नमः" मंत्र का जाप करें।
  • घर के उत्तर-पश्चिम कोने को स्वच्छ और खुला रखें।
  • इस दिशा में वायु संचार अच्छा होना चाहिए, इसलिए खिड़कियाँ और वेंटिलेशन खुला रखें।
  • हल्के रंगों का प्रयोग करें, जैसे सफेद, हल्का नीला या ग्रे।
  • किसी भी भारी वस्तु या जल स्रोत को इस दिशा में रखने से बचें।

निष्कर्ष

अतिवाह्य देवता वास्तु शास्त्र में सुरक्षा, संतुलन और शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। यदि घर या भवन में उत्तर-पश्चिम दिशा को सही ढंग से वास्तु के अनुसार रखा जाए, तो यह जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालता है।

महत्वपूर्ण बातें:

  • उत्तर-पश्चिम दिशा को खुला और स्वच्छ रखना चाहिए।
  • इस दिशा में भारी वस्तुएँ या जल स्रोत नहीं होने चाहिए।
  • "ॐ वायवे नमः" मंत्र का जाप करने से सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
  • यात्रा और व्यापार में सफलता के लिए इस दिशा को संतुलित बनाए रखना आवश्यक है।

"अतिवाह्य देवता की कृपा से जीवन में सुरक्षा, संतुलन और सफलता प्राप्त होती है।"