पित्रुपद देवता का स्वरूप
- दिशा: दक्षिण
- तत्व: पृथ्वी और जल
- स्वामी ग्रह: शनि और राहु
- गुण: पितृ शांति, सुरक्षा, संतुलन
वास्तु शास्त्र में पित्रुपद देवता का महत्व
पित्रुपद देवता का स्थान दक्षिण दिशा में होने के कारण इस दिशा में ध्यान और संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी होता है।
✅ शुभ प्रभाव
- पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- घर में पितृ दोष का नाश होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति और सुख-शांति बनी रहती है।
❌ अशुभ प्रभाव (वास्तु दोष होने पर)
- घर में मानसिक अशांति बनी रहती है।
- पितृ दोष के कारण आर्थिक समस्याएँ हो सकती हैं।
- स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ सकती हैं।
पित्रुपद देवता की पूजा और वास्तु उपाय
- दक्षिण दिशा में पूर्वजों का चित्र या प्रतीक स्थापित करें।
- पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म का पालन करें।
- "ॐ पितृभ्यः नमः" मंत्र का जाप करें।
- इस दिशा में हल्के और शांत रंगों का प्रयोग करें।
निष्कर्ष
पित्रुपद देवता पितरों के आशीर्वाद और पारिवारिक शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। यदि इस दिशा में वास्तु दोष हो तो उचित उपायों द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है।
"पित्रुपद देवता की कृपा से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।"