सोम वास्तु देवता का परिचय

सोम वास्तु देवता चंद्रमा से संबंधित माने जाते हैं। यह देवता शीतलता, सौम्यता, मन की शांति, संवेदनशीलता और मानसिक संतुलन के प्रतीक होते हैं। वास्तु शास्त्र में सोम देवता उत्तर दिशा के अधिपति माने गए हैं, और यह दिशा बुद्धि, समृद्धि और शांति का कारक होती है।

परिचय

सोम देवता का स्वरूप

  • दिशा: उत्तर
  • तत्व: जल और मनोवैज्ञानिक संतुलन
  • ग्रह: चंद्रमा
  • ऊर्जा: कोमलता, मानसिक शांति, कल्पनाशक्ति, समृद्धि
  • प्रभाव: मन, भावनाएँ, स्मरण शक्ति, सौंदर्य और कला

सोम देवता के लाभ

  • मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करते हैं।
  • व्यक्ति की स्मरण शक्ति और एकाग्रता बढ़ाते हैं।
  • कल्पनाशक्ति और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करते हैं।
  • शरीर में जल तत्व का संतुलन बनाए रखते हैं, जिससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति और ध्यान के लिए सहायक होते हैं।

वास्तु में सोम देवता का महत्व

वास्तु शास्त्र के अनुसार, यदि उत्तर दिशा में दोष होता है, तो व्यक्ति मानसिक तनाव, अनिद्रा, भावनात्मक अस्थिरता और आर्थिक समस्याओं का सामना कर सकता है। इसलिए इस दिशा को संतुलित रखना आवश्यक होता है।

सोम देवता को प्रसन्न करने के उपाय

  • घर की उत्तर दिशा को साफ और हल्का बनाए रखें।
  • सोम देवता के लिए जल से भरा एक पात्र उत्तर दिशा में रखें।
  • चंद्रमा को अर्घ्य दें और “ॐ सों सोमाय नमः” मंत्र का जाप करें।
  • सफेद रंग के कपड़े पहनें और चंद्रमा से संबंधित वस्तुओं (मोती, चाँदी) का उपयोग करें।
  • सोमवार के दिन उपवास रखें और शिवजी की पूजा करें।

निष्कर्ष

सोम देवता चंद्रमा के अधिपति होते हैं और मानसिक संतुलन, शांति तथा समृद्धि प्रदान करते हैं। वास्तु शास्त्र में उत्तर दिशा से जुड़े इन देवता का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। सही उपाय अपनाकर व्यक्ति अपने जीवन में मानसिक शांति और सफलता प्राप्त कर सकता है।

“सोम देवता की कृपा से जीवन में शांति, सौभाग्य और समृद्धि बनी रहती है।”